नवआभा टाइम्स: लद्दाक भारत का बहुत ही मरोराम पर्यटन स्थल है, यहाँ का पहाड़ी देखने देखने में मज़ा आता है यहाँ पर हर साल ,झीलें, पहाड़ियां, नदियां और ऊंची पहाड़ियों बर्फ से चादर से ढंकी होती है|लद्दाख में हर साल लाखो लोग घूमने जाते है: लद्दाख भारत के केंद्रशासित प्रदेश है, जिसका राजधानी लेह है। लद्दाख में दो जिले हैं, एक जिले का नाम लेह और दूसरे जिले का नाम कारगिल है। लद्दाख का कुल क्षेत्रफल 59,186 वर्ग किलोमीटर और 2011 के अनुसार इसकी जनसंख्या 2,74,289 है।यहाँ पर अधिकतर हिंदी भाषा का उपयोग करते हैं, इसके अलावा लद्दाखी और तिब्बती भाषा भी बोली जाती है। लद्दाख के लोग बिल्कुल शांत होते हैं। लद्दाख के स्थानीय लोग पर्यटकों को काफी मदद करते है,लद्दाख में खाने-पीने और रात को ठहरने के लिए होटल ,ढाबा, रेस्टोरेंट्स, और टेंट की सुविधा उपलब्ध रहती है,
लद्दाख के लोग का मुख्य काम कृषि,भेड़ पालन,सेब, अखरोट और खुबानी जैसी चीजों का उत्पादन करते हैं, लद्दाख का मुख्य आकर्षण केंद्र नुब्रा वैली, खारदुंग ला पास, पैंगोंग लेक, त्सो कर लेक, त्सो मोरीरी लेक, डिस्किट मोनेस्ट्री, मैग्नेटिक हिल, हंडर और शांति स्तूप है। इन सभी के अलाबा आप गिलगिट बाल्तिस्तान के गांव तुरतुक, त्याक्षि और थांग का भी विजिट कर सकते हैं, वर्तमान में ये सभी स्थल लद्दाख जाने वाले पर्यटकों के आकर्षण केंद्र बन गया है।
अगर आप लद्दाख जाने का मन बना रहे है तो आप अपनी गाड़ी के साथ-साथ बस, ट्रेन, फ्लाइट, प्राइवेट टैक्सी से भी लद्दाख जा सकते हैं|
में घूमने जाने से पहले आपको परमिट बनवाना पड़ता है, जिसे लद्दाख के इनर लाइन परमिट के नाम से जाना जाता है। भारत सहित अन्य देशो की लिए भी परमिट बनवाना पड़ता है| बॉर्डर एरिया में विदेशी पर्यटकों को लद्दाख के प्रत्येक क्षेत्र में जाने की अनुमति नहीं दी जाती है।प्राकृतिक सौंदर्य भरपूर और छटा बिखेरता लद्दाख बर्फ से ढंके ऊंचे-ऊंचे पर्वतों से घिरा रहता है, यहाँ पर ज्यादातर क्षेत्र बंजर होता है। यात्रा करते समय श्रीनगर- लेह राष्ट्रीय राजमार्ग पर निराले प्राकृतिक सौंदर्य के दृश्य देखने को मिलते हैं। यहाँ मीलों तक फैले बर्फीले पर्वतों को देख कर लगता है की पर्वत कितना शांत खड़ा हैं। यहाँ का आबादी बहुत कम है।
लद्दाख में कच्चे मकान, चरते हुए जानवर,.बर्फ से लदे पेड़, गांवों के बीचोंबीच बहती छोटी सी नदी, यहाँ का पारंपरिक वेशभूषा में लद्दाखी बालिकाएं, वीराने में जीवन का ऐसा स्पंदन शायद ही कहीं और देखने को मिलेगा। यहाँ पैर हमेशा और तेज एवं रुखी तथा धूप एकदम सीधी और त्वचा को बेधती है लेकिन हर परिस्थिति का डट कर सामना करना लद्दाखियों का स्वभाव है।
लद्दाख के लोगो में धैर्य, सहिष्णुता, विश्वास और हर प्रकार की चुनौतियों का सामना करना सीख लिया है। लद्दाख का अपना अलग संस्कृति है, अलग जीवनशैली है। लद्दाख में विविध प्राकृतिक सौंदर्य से पर्यटकों को लुभाता है। पर्वतारोहियों को नून (7135 मी.), कुन (7077 मी.), वाइट नीडल (6500 मी.), पिनेकल (6930 मी.) और जैड- वन (6400 मी.) चोटियों पर विजय प्राप्त किया है। यहाँ का नूबरा घाटी चींटियों, पेड़- पौधों, ग्लेशियर आदि के प्राकृतिक सौंदर्य से सभी को अभिभूत कर देती हैं। यहाँ खेलों में ट्रैकिंग, केनोइंग राफ्टिंग वगैरह के लिए लद्दाख एक बेहतर है।
लद्दाख की सिंधु नदी इसी क्षेत्र से गुजरती हैं| पानामिक, चूमाथांग और चांगथांग में गंधक का पानी से जोड़ों के दर्द का इलाज होता है। सदियों से यहां के लोग प्राकृतिक जड़ी-बूटियों, खनिज युक्त झीलों और झरनों के जल से अपना इलाज करने बहार से भी लोग आते है । पैंगोंग झील 14000 फुट की ऊंचाई पर स्थित 150 कि.मी. लम्बी और 4 कि.मी. और उसका खारे पानी वाली पर्यटक को देखने को मिलता है।लद्दाख की सिंधू नदी के किनारे खालेस्ते और शैलाक सैलानियों के लिए आकर्षण के केंद्र हैं। यहां आज भी मूल आर्य नस्ल के डूक्रपा जनजाति के कुछ परिवार पारंपरिक रूप से जीवन व्यतीत कर रहे हैं। यहां पर पांच गांव है । इसमें अभी सिर्फ दो गांवों दाह और बियामा तक ही पहुंचा जा सकता है । इन परिवारों की संख्या बहुत कम है। इनके नैन-नक्श प्राचीन आर्यों की तरह हैं और अपनी सभ्यता और संस्कृति को अभी तक ये बचाए हुए हैं। इसलिए अन्य लद्दाखियों से भिन्न इनकी जीवनशैली, परम्पराओं, संस्कृति, त्यौहारों, संगीत, कला आदि का अध्ययन करने के लिए देश-विदेश से अनेक अध्ययनकर्ता यहां आते हैं।
लद्दाख में धार्मिक स्थल हैं। बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए तो यह क्षेत्र अत्यंत पवित्र स्थान है। भगवान बुद्ध को मनाने वाले लोग तिब्बत के बाद लेह में ही दर्शन करने आते है। लेह स्थित पवित्र बौद्ध शांति स्तूप की भव्यता देख कर सभी धर्मों के लोग आलौकिक आनंद से भर उठते हैं।लद्दाख क्षेत्र में ज्यादातर त्यौहार सर्दियों में ही होते हैं लेकिन कुछ महत्वपूर्ण त्यौहार गर्मियों में भी मनाए जाते हैं। हेमिस मेला जोकि हर वर्ष जून या जुलाई में पद्मा समभवा की याद में मनाया जाता है। हर साल बौद्ध अनुयायियों, स्थानीय लोगों के अलावा विदेशी पर्यटकों भी गुम्पा पूजा में इकट्ठी होती है, और श्रद्धालु पारंपरिक रूप से नृत्य तथा गायन करते हैं।