मधुबनी जिला मुख्यालय से सटे मंगरौनी गांव में बूढ़ी माई का मंदिर कामाख्या का प्रतिरूप

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नवआभा टाइम्स: मधुबनी जिला मुख्यालय से सटे मंगरौनी गांव में बूढ़ी माई का मंदिर कामाख्या का प्रतिरूप है| यहां की भगवती का जो रूप है वह कामाख्या का प्रतीक माना जाता है। जो तांत्रिक संकेतक है। मंदिर में सामान्य पूजा के साथ विशिष्ट तांत्रिक पंडितों द्वारा भगवती की तांत्रिक विधि से पूजा की जाती है।बूढ़ी माई का मंदिर मिथिला में शक्ति उपासना के केंद्र के रूप में प्राचीन काल से विख्यात रहा है। साथ ही पूरे भारत के लोग यहाँ दर्शन करने के लिये आते है,यहां के परंपरा की अटूट धारा कई साल से विशेष रही है। यहां पूजा करने वालों की मनोकामना भगवती पूरी करती हैं।बूढ़ी माई मंदिर लगभग एक हजार साल पुराना है। यहाँ शारदीय नवरात्र में बिशिष्ट पूजा किया जाता है,इसमें देश के अलावा विदेशों से भी हजारों श्रद्धालु यहां माता के दर्शन को आते हैं| संध्या आरती में बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते है। यहां जो सच्चे मन से मनोकामना लेकर बाले को मुराद पूरी हो जी हैं।’

किया कहते है मंदिर के पुजारी सुभाष चंद्र झा

मंदिर के पुजारी सुभाष चंद्र झा के अनुसार मंदिर में सामान्य पूजा के साथ विशिष्ट तांत्रिक पंडितों द्वारा भगवती की तांत्रिक विधि से पूजा की जाती है।पुजारी सुभाष चन्द्र झा के अनुसार बुढ़ी माई भगवती का रूप है। वह कामख्या का प्रतीक हैं। इस मंदिर की स्थापना मिथिला के महान तांत्रिक मदन मनोहर उपाध्याय जी के द्वारा किया गया था । कहा जाता है कि कामाख्या के मंदिर में में पंडित जी को पूजा करने से रोक दिया गया,फिर उन्होंने माँ कामाख्या देवी की आराधना किये,जिसके फलसरूप माँ में बूढ़ी मई में रूप एक परिसर के तलाब की खुदाई में माँ प्रकट हुई । उसी दौरान यंत्र के रूप में मां का प्रकट हुआ और पंडित मदन मनोहर उपाध्याय जी उस यंत्र को लेकर पूजा करने लगे।पुजारी सुभाष चन्द्र झा के अनुसार मिथिला के हृदयस्थल मधुबनी के बेनीपट्टी स्थित उच्चैठ, राजराजेश्वर शक्तिपीठ डोकहर व बूढ़ी माई त्रिकोण बनाता है, जो तांत्रिक संकेतक है। मंदिर में सामान्य पूजा के साथ विशिष्ट तांत्रिक पंडितों द्वारा भगवती की तांत्रिक विधि से पूजा की जाती है। महाष्टमी व महानवमी एक ही दिन रहने के कारण यहां विशेष पूजा का आयोजन होना है।

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