बिहार का एक महान गणितज्ञ वशिष्‍ठ नारायण सिंह जिसने पूरी दुनिया को चकित किया

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वशिष्‍ठ बाबू का जन्‍म 2 अप्रैल 1946 को तत्‍कालीन शाहाबाद (अब भोजपुर, आरा) जिले के बसंतपुर गांव में हुआ था। वशिष्‍ठ नारायण सिंह बचपन से ही मेधा के काफी धनी थे। उनकी प्राथमिक शिक्षा गांव के मिडिल स्‍कूल से हुई। छठी कक्षा में उनका चयन तब के सुप्रसिद्ध नेतरहाट स्‍कूल में हो गया। 1961 में उन्‍होंने नेतरहाट से ही हायर सेकेंड्री की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की। वे पूरे प्रदेश में अव्‍वल आये। इसके बाद उच्‍च शिक्षा के लिए वे पटना साइंस कॉलेज चले गये थे। यहां उन्‍होंने गणित ऑनर्स के लिए नामांकन लिया। स्‍नातक प्रथम वर्ष की कक्षा में उनके पूछे सवालों का जवाब देने में शिक्षक भी परेशान हो जाते थे। इसकी जानकारी कॉलेज के तत्‍कालीन प्राचार्य एनएस नागेंद्र नाथ को मिली तो उन्‍होंने खुद वशिष्‍ठ से मुलाकात की। प्राचार्य खुद ही उनकी प्रतिभा देखकर हैरान रह गये और उन्‍हें लेकर पटना विश्‍वविद्यालय के तत्‍कालीन कुलपति जॉर्ज जैकब के पास गये। प्राचार्य ने अनुरोध किया कि वशिष्‍ठ बाबू को सीधे स्‍नातक अंतिम वर्ष की परीक्षा देने की अनुमति दी जाए। केवल एक छात्र के लिए पीयू ने नियमों में बदलाव किया और वशिष्‍ठ बाबू केवल एक वर्ष की पढ़ाई के बाद सीधे स्‍नातक अंतिम वर्ष की परीक्षा में शामिल हुए और इस परीक्षा में भी टॉप किया।पटना साइंस कॉलेज में पढ़ाई के दौरान ही उनकी मुलाकात अमेरिका की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से आए जॉन एल कैली से हुई। कैली भी वशिष्‍ठ बाबू की प्रतिभा से काफी प्रभावित हुए और उन्‍हें अमेरिका आने का न्‍योता दिया। केवल 19 वर्ष की उम्र में वशिष्‍ठ बाबू अमेरिका गये और कैलिफोर्निया यूनिवसिर्टी से उन्‍होंने पहले मास्‍टर्स और इसके बाद पीएचडी की। कहा जाता है कि अमेरिका उन्‍हें अपने ही देश में रखना चाहता था, लेकिन वे तैयार नहीं हुए और भारत लौट आये। यहां आकर उन्‍होंने आइआइटी कानपुर, टाटा इंस्‍टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च, मुंबई और भारतीय सांख्यिकी संस्‍थान, कोलकाता में अध्‍यापन कार्य किया।अमेरिका की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से किया पीएचडी किये |गणितज्ञ वशिष्‍ठ नारायण सिंह ने पूरी दुनिया को किया चकित कर दिए थे |वशिष्‍ठ बाबू की शादी एक आर्मी अफसर की बेटी से हुई। यह शादी सफल नहीं हुई। शादी के थोड़े ही दिनों बाद तलाक हो गया। काफी सरल स्‍वभाव के वशिष्‍ठ बाबू के लिए यह सदमा साबित हुआ। इस घटनाक्रम के थोड़े ही दिनों बाद वे मानसिक परेशानियों से घिर गये। वे सिजोफ्रेनिया के शिकार हो गये। इस बीमारी में व्‍यक्ति बहुत जल्‍दी चीजों को भूल जाया करता है। कहा यह भी जाता है कि शादी टूटने के साथ ही कॅरियर में आई बाधाओं से भी वशिष्‍ठ बाबू काफी परेशान थे।रांची के सेंट्रल स्‍कूल ऑफ साइकेट्री में काफी दिनों तक वशिष्‍ठ बाबू का इलाज चला। 1985 में उन्‍हें रांची के अस्‍पताल से छोड़ दिया गया। बीच में कई सालों तक वे लापता हो गये। कई साल बाद 1993 में वे छपरा जिले के डोरीगंज में सड़क किनारे के ढाबे में बर्तन धोते मिले। उनके किसी जानने वाले ने उनको पहचाना और इसके बाद वे घर लाये गये। दोबारा उनका इलाज शुरू हुआ। तत्‍कालीन सरकार की पहल पर बेंगलुरु के मानसिक रोग अस्‍पताल में उनका इलाज हुआ और जल्‍द ही वे वहां से डिस्‍चार्ज भी हो गये। इसके बाद कई सालों तक वे काफी हद तक स्‍वस्‍थ रहे। 2010 में वे पटना साइंस कॉलेज में आयोजित एक कार्यक्रम में भी शामिल हुए। हालांकि बाद के दिनों में उनकी दीमागी हालत फिर बिगड़ने लगी थी।बिहार सर्कार ने वशि‍ष्‍ठ बाबू के नाम से सिक्‍स लेन पुल का नामकरणभी किया गया| वशिष्‍ठ बाबू जब देश और समाज के लिए उपयोगी हो सकते थे, तब शायद उनकी कद्र नहीं समझी गई, लेकिन बाद में सभी को अपनी गलती का अहसास हुआ। छपरा जिल के ढाबे में बर्तन धोते पाये जाने के बाद सरकार और समाज को उनकी फिक्र हुई। सभी ने अपनी तरफ से उनका बचा जीवन आसान करने की कोशिश की। उनके निधन के बाद गृह जिले आरा और पटना के बीच सोन नदी पर बने सिक्‍स लेन पुल काे उन्‍हें समर्पित किया गया है। बिहटा और कोईलवर के बीच बने पुल के तीन लेन का उद्घाटन केंद्रीय मंत्री नीतीन गडकरी ने हाल ही में किया है। पुल की बाकी लेन अगले साल के मध्‍य तक पूरी हो जाने की उम्‍मीद है। इस पुल का नाम वशिष्‍ठ नारायण सिंह सेतु रखा गया है। यह पुल करीब 500 मीटर के फासले पर मौजूद 150 साल से अधिक पुराने अब्‍दुल बारी पुल के सड़क मार्ग का विकल्‍प बन रहा है।

 

 

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